कविता
कविता में उसकी आवाज
- राकेश रोहित
वह ऐसी जगह खड़ा था
जहाँ से साफ दिखता था आसमान
पर मुश्किल थी
खड़े होने की जगह नहीं थी उसके पास।
जहाँ से साफ दिखता था आसमान
पर मुश्किल थी
खड़े होने की जगह नहीं थी उसके पास।
वह नदी नहीं था
कि बह चला तो बहता रहता
वह नहीं था पहाड़
कि हो गया खड़ा तो अड़ा रहता।
कि बह चला तो बहता रहता
वह नहीं था पहाड़
कि हो गया खड़ा तो अड़ा रहता।
कविता में अनायास
आए कुछ शब्दों की तरह
वह आ गया था धरती पर
बच्चे की मुस्कान की तरह
उसने जीना सीख लिया था।
वह आ गया था धरती पर
बच्चे की मुस्कान की तरह
उसने जीना सीख लिया था।
बड़ी-बड़ी बातें मैं
नहीं जानता, उसने कहा
पर इतना कहूँगा
आकाश इतना बड़ा है तो धरती इतनी छोटी क्यों है?
क्या आपने हथेलियों के नीचे दबा रखी है थोड़ी धरती
क्या आपके मन के अँधेरे कोने में
थोड़ा धरती का अँधेरा भी छुपा बैठा है?
पर इतना कहूँगा
आकाश इतना बड़ा है तो धरती इतनी छोटी क्यों है?
क्या आपने हथेलियों के नीचे दबा रखी है थोड़ी धरती
क्या आपके मन के अँधेरे कोने में
थोड़ा धरती का अँधेरा भी छुपा बैठा है?
सुनो तो, मैंने कहा
......................!!
......................!!
नहीं सुनूंगा
आप रोज समझाते हैं एक नयी बात
और रोज मेरी जिंदगी से एक दिन कम हो जाता है
आप ही कहिये कब तक सहूँगा
दो- चार शब्द हैं मेरे पास
वही कहूँगा
पर चुप नहीं रहूँगा!
आप रोज समझाते हैं एक नयी बात
और रोज मेरी जिंदगी से एक दिन कम हो जाता है
आप ही कहिये कब तक सहूँगा
दो- चार शब्द हैं मेरे पास
वही कहूँगा
पर चुप नहीं रहूँगा!
मैंने तभी उसकी आवाज
को
कविता में हजारों फूलों की तरह खिलते देखा
जो हँसने से पहले किसी की इजाजत नहीं लेते।
कविता में हजारों फूलों की तरह खिलते देखा
जो हँसने से पहले किसी की इजाजत नहीं लेते।
उसकी आवाज को हजारों फूलों की तरह खिलते देखा / राकेश रोहित |